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बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास / सुमित्रानंदन पंत

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बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास,
पिलाता जा, बढ़ती जा प्यास!
सुनेगा तू ही यदि न पुकार
मिलेगा कैसे पार?
स्वप्न मादक प्याली में आज
डुबादे लोक लाज, जग काज,
हुआ जीवन से, सखे, निराश,
बाँध, निज भुज मद पाश!