भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास,
पिलाता जा, बढ़ती जा प्यास!
सुनेगा तू ही यदि न पुकार
मिलेगा कैसे पार?
स्वप्न मादक प्याली में आज
डुबादे लोक लाज, जग काज,
हुआ जीवन से, सखे, निराश,
बाँध, निज भुज मद पाश!