भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैनर पर बाजारी सपने / रूपम झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैनर पर बाजारी सपने
घर में सूखी आँत

बेच रहा है वक़्त काल बन
अब रोटी की गंध
राख न हो जाये यह जीवन
चारो ओर प्रबंध
चाह रहे हैं बोया जाए
फिर खेतो में दाँत

नई किरण लेकर आएगी
झुग्गी में सरकार
बोल रही जन-जन के हिस्से
अब होगा रोजगार
चमक दमक से हो ना जाएँ
फिर से हाथ अनाथ