बैरक कै म्हां पड़े पड़े कै याद अंगुरी आगी / मेहर सिंह
के सुपने का जिक्र बात एक याद जरूरी आगी
बैरक कै म्हां पड़े पड़े कै याद अंगुरी आगी।टेक
सुपने में सुसराड़ डिगरग्या मन मैं घणा उम्हाया
ताता पाणी करवा कै नै बैठ पाटडै़ न्हाया
छोटा साला न्यूं बोल्या जीजा रोटी खाया
मेरी सासू ने प्रेम मैं भर कै जड़ में बैठ जमाया
मेरे खाण नै थाली कै म्हां हलवा पुरी आगी।
जीजा तै बतलावण खातर कट्ठी होगी साली
कोए गोरी कोए स्याम वर्ण की कोए भूरी कोए काली
भटक भटक कै बतलावैं थी कर कै नजर कुढ़ाली
मनै घूर घूर कै देखण लागी कर कै नजर निराली
रूकमणी प्यारी और चन्दुई वा झट कस्तूरी आगी।
एक जणी नै करी नमस्ते एक नै करी प्रणाम
दिल का भेद बता दे जीजा खोल कै तमाम
मीठी मीठी बात करैं थी कर कै जिगर मुलाम
हाथ जोड़ कै न्यू बोली हो म्हारे गोचरी काम
बोल पडै नै धरसी के के इसी जरूरी आगी।
सुपने कै म्हां तरहां तरहां के दे ज्यां ठाठ दिखाई
मेरे साला साली कट्ठे होा रे कुछ ठोले की लुगाई
आंख खुली जब कुछ ना दिखा कुछ ना दिया दिखाई
मेरे चौगरदे कै लडधु सोवैं वाहे बैरक पाई
कैह मेहर सिंह सतगुरु की दया तै शर्म हजूरी आगी।