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बैल बियावै, गैया बाँझ / 22 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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खरही नेॅ
खरहा सेॅ कहलकै-
हम्मेॅ शहर देखलेॅ छियै
जैठां होय छै, आदमी के कंठोॅ मेॅ माला
हाथोॅ में प्याला
वैं हमरा कनखियाय केॅ देखलकै
हम्मेॅ बुझी गेलियै
ओकरोॅ मनोॅ मेॅ छै कुछ काला।
अनुवाद:
खरही ने
खरहा से कहा-
मैंने शहर देखा है
जहाँ होता है आदमी के कंठ में माला
हाथ में प्याला
उसने मुझे देखा तिरछी आँखोॅ से
मैं समझ गयी
उसके दिल में है काला।