भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 27 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
सियार
सियारनी सेॅ कहलकै-
लंगड़ी चिड़ियौं दाना चुगै छै
लंगड़ोॅ जानवरो चरै छै
मतर आदमी केॅ देखौ
कत्ते हृष्ट-पुष्ट छै
तहियो भगवानोॅ के नाम पर
भीख माँगलोॅ फुरै छै।
अनुवाद:
सियार ने
सियारनी से कहा-
लँगड़ी चिड़िया भी चुगती है
लँगड़ा जानवर भी चरता है
आदमी को देखो
हृष्ट-पुष्ट है कितना
फिर भी भगवान के नाम पर
भीख माँगे फिरता है।