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बैल बियावै, गैया बाँझ / 31 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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सियारंे शेर सेॅ पूछलकै-
आदमी लुग
कोॅन किसिम के संविधान छै?
शेरें कहलकै-
जैमेॅ रोज-रोज
हेरा-फेरी करै छै
अपनोॅ मोॅन लायक बनावै छै
होने संविधान छै।
अनुवाद:
सियार ने शेर से पूछा-
आदमी के पास
कौन सा संविधान है
शेर ने कहा-
रोज-रोज ‘उसमें’
हेरफेर करता है
अपने मन लायक बनाता है
वैसा संविधान है।