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बैल बियावै, गैया बाँझ / 34 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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बाढ़ राहत के
शिविर मेॅ
आदमी केॅ आदमी
धकेली रहलोॅ छेलै
ओकरोॅ हिस्सा के राशन
हड़पी रहलोॅ छेलै,
वहीं डाली पर
बैठलोॅ बन्दर
ई सब देखी रहलोॅ छेलै
फल तोड़ी केॅ आपस मेॅ
बाँटी-बाँटी खाय रहलोॅ छेलै
रही-रही केॅ
आदमी केॅ
चिढ़ाय रहलोॅ छेलै।

अनुवाद:

बाढ़ राहत के
शिविर में
आदमी आदमी को
धकेल रहा था
उसके हिस्से का
राशन हड़प रहा था
वहीं डाल पर
बैठे बंदर
सब देख रहे थे
फल तोड़कर आपस में
बाँट-बाँट कर खा रहे थे
रह-रह कर
आदमी को
चिढ़ा रहे थे।