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बैल बियावै, गैया बाँझ / 49 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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कागिनें
कागा सेॅ पुछलकै-
आदमी केन्होॅ होय छै?
कागां कहलकै-
दू टांगोॅ पर खड़ा रहै छै
व्यवहार जानवरों रं करै छै
जे वक्ती पर
अपनौं केॅ नै पहचानै छै
वही आदमी छेकै।
अनुवाद:
कागिन ने
काग से पूछा-
आदमी कैसा होता है?
उसने कहा-
दो टांगों पर खड़ा रहता है
व्यवहार जानवर सा करता है
जो वक्त पर
अपनों को भी नहीं पहचानता है
वही आदमी कहलाता है