भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैल बियावै, गैया बाँझ / 50 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्मेॅ माँसाहारी छेकां
माँस-माँस में भेद नै करै छी
सब्भे कुछ जानै छियै
तहियोॅ खाय छियै
हम्मेॅ आदमी छेकां।

अनुवाद:

मैं मांसाहरी हूँ
माँस-माँस में भेद नहीं करता,
सब कुछ जानता हूँ
फिर भी खाता हूँ
मैं आदमी हूँ।