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बैल बियावै, गैया बाँझ / 55 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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एक दिन
शहर देखै लेॅ चललै कौआ
वैं देखलकै-
एक जगह मंचोॅ पर
शेर दहाड़ी रहलोॅ छेलै
ओकरोॅ मुँहोॅ सेॅ
आवी रहलोॅ छेलै दुर्गन्ध
बीचोॅ-बीचोॅ में
सियारो बोलै छेलै
जेकरोॅ मुँहोॅ सेॅ
आवै छेलै विषैनी गंध
वहीं मंचासीन बन्दर
रही रही केॅ हुड़कै छेलै।
ई सब देखी कौआ समझी गेलै
यही शहर छेकै।

अनुवाद:

एक दिन
शहर देखने चला कौआ
उसने देखा-
एक जगह मंच पर
शेर दहाड़ रहा था
उसके मुँह से
आ रही थी दुर्गन्ध
बीच-बीच में
सियार बोल रहा था
जिसके मुँह से
आ रही थी विषयुक्त गंध
वहीं मंचासीन बंदर
हुड़क रहा था रह-रहकर
यह सब देख कौआ समझ गया
यही शहर है।