भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 65 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
गिरगिटें
मादा गिरगिट सेॅ कहलकै-
भाग यैठां सेॅ
आदमी केॅ देखैं
केन्होॅ होय गेलोॅ छै
रंग बदलेॅ लागलोॅ छै
हमरे सिनी रं।
अनुवाद:
गिरगिट ने
मादा गिरगिट से कहा-
भाग यहाँ से
आदमी को देखो
हो गया कैसा
रंग बदलने लगा
उसके ही जैसा।