भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 66 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
कौआं
कौव्वी सेॅ कहलकै-
देखैं ई आदमी केॅ
हम्मेॅ तेॅ बुतरू के रोटी छीनै छियै
आदमी बड़का सिनी के
रोजी-रोटियो छीनी लै छै।
अनुवाद:
कौवे ने
कौवी से कहा-
देखो इस आदमी को
मैं तो बच्चे की रोटी छीनता हूँ
आदमी/बड़े-बड़ों की
रोजी-रोटी छीन लेता है।