भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैल बियावै, गैया बाँझ / 68 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैदानोॅ में चरतेॅ
जानवरोॅ के झुण्ड सेॅ
एकें कहलकै-
हमरा सिनी नाँखि आदमी
कभियो साथ नै रहेॅ सकेॅ
ऊ सिनी कभी जाति के नामोॅ पर
कभियो पाति के नामोॅ पर
आरो कभी पार्टी के नामोॅ पर
अलग-अलग रहै के
अभ्यासी बनी गेलोॅ छै।

अनुवाद:


मैदानों में चरते हुए
जानवरों की भीड़ से
एक ने कहा-
उनकी तरह आदमी
कभी साथ नहीं रह सकते
वे कभी जाति के नाम पर
कभी पाति के नाम पर
कभी पार्टी के नामपर
अलग-अलग रहने की
पड़ गयी है उन्हें आदत।