भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 72 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
बाबूं
बेटा सेॅ जेन्है कहलकै-
गधा, कुत्ता, सूअर कहीं का।
तेॅ ई सुनी केॅ कुत्तां कहलकै-
बस करोॅ मालिक-
तोरोॅ बाबुओ जी
तोरायहा कहै छेलौं
आखिर औलदे छेकौं तोरोॅ
कुछ तेॅ गुण ऐवे करथौं।
अनुवाद:
पिता ने
बेटों से ज्योंहि कहा-
गधा, कुत्ता, सूअर कहीं का।
यह सुनकर कुत्ते ने कहा-
बस कीजिए मालिक
आपके पिताजी भी
आपको यही कहा करते थे
आखिर औलाद है आपकी
कुछ गुण तो आयेगा ही।