भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 73 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
बगड़ीं
बगड़ोॅ सेॅ कहलकै-
तोहें सौतिन लानवौ
ई हम्मेॅ बर्दास्त नै करेॅ पारौं
ई सुनी केॅ कौआं
बगड़ी सेॅ कहलकै-
रहै छैं आदमी के घरोॅ के छज्जा में
तेॅ आदमी के गुण ऐवै करतै।
अनुवाद:
बगड़ी ने
बगड़ो से कहा-
तुम सौतिन लाओगे,
मैं बर्दास्त नहीं करूंगी
यह सुनकर कौआ ने
बगड़ो से कहा-
रहते हो आदमी के घर के छज्जे पर
तो आदमी का गुण आ ही जायेगा।