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बैल बियावै, गैया बाँझ / 75 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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सियार लीन छेलै
भगवानोॅ के ध्यान मेॅ
लेलेॅ हाथोॅ में कंठी के माला
हिन्नेॅ सियारनी पड़ोसी सेॅ
झगड़ा करी ऐलै
लैकेॅ हाथोॅ में लाठी-भाला
लौटी केॅ सब्भे बात
सियारोॅ सेॅ कही रहलोॅ छेलै
घन्टो बाद सियारें आँख खोललकै
तबेॅ सियारनीं ओकरा सेॅ पुछलकै-
जे बात हम्मेॅ कहलियौं
ऊ सुनवो करलौ की नै?
यै पर सियारें कहलकै-
ऊ आदमी नै छेकै
कि ध्यान कहीं
मगन कहीं
आरो रहै छै कांही।

अनुवाद:

सियार लीन था,
भगवान के ध्यान में
लेकर हाथ में कंठी माला
इधर सियारनी पड़ोसी से
झगड़ा कर आयी
लेकर हाथ में लाठी-भाला
लौटकर सारी बातें
सियार से सुना रही थी
घंटो बाद सियार ने आँखें खोलीं
तब सियारनी ने उससे पूछा-
जो बातें उसने कही,
वह सुनी भीक्या?
इस पर सियार ने कहा-
वह आदमी नहीं है
ध्यान कहीं
मगन कहीं
और रहता कहीं है।