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बैल बियावै, गैया बाँझ / 76 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

छुछुन्दरें
छुछन्दरी सें कहलकै-
आदमी हमरे सब नाँखि नंगा छै
गंधावै छै, महकै छै
जिल्लत झेलै आरो झेलावै छै
तहियो आदमी कहावै छै।

अनुवाद:

छुछुन्दर ने
छुछुन्दरी से कहा-
आदमी हमसे कैसे अलग
वह भी गंधाता है, महकता है
जिल्लत झेलता और झेलाता है,
तब भी आदमी कहलाता है।