बैल बियावै, गैया बाँझ / 80 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
एक गाछी के नगीच
सियारें आदमी सेॅ
दौड़ै के होड़ लगैलकै; कहलकै-
जे दौड़ी केॅ येठां से कोस भरी दूर
हौ कुआँ छुवी केॅ पहिलेॅ ऐतै
वैं गाछी के नगीच राखलोॅ मिठाय खैतै।
आदमिये केॅ सीटी बजाना छेलै
से वैं जेन्हैं सीटी बजैलकै
तेन्है सियार आगू दौड़ी पड़लै
हिन्नेॅ आदमी गाछी के ओटोॅ में छिपी गेलै
सियारें देखलकै
आदमी काहूं नै छेलै
नै आगू, नै पीछू।
सियारे सोचलकै-
आदमी शायत हवा नाँखि निकली गेलोॅ छै
यही लेॅ वहू दौड़ी पड़लै
आरो जबेॅ कुआँ छुवी घुरलै, तेॅ देखलकै
बैठी केॅ आदमी मिठाय खाय रहलोॅ छै
होन्है, जेना फाइलोॅ पर बैठी
बाबू सालो साल खैतेॅ रहै छै।
अनुवाद:
एक पेड़ के पास
सियार ने आदमी से
दौड़ का होड़ लगाया, बोला-
जो दौड़कर यहाँ से एक कोस दूर
उस कुएँ को छूकर पहले आयेगा
वह पेड़ के निकट रखी मिठाई खायेगा।
आदमी को ही सीटी बजाना था।
सो उसने सीटी ज्योंहि बजायी
त्योंहि सियार आगे दौड़ गया।
इधर आदमी पेड़ की ओट में छिप गया
सियार ने देखा
आदमी कहीं नहीं था
न आगे, न पीछे
उसने सोचा-
शायद हवा की तरह निकल गया है
इसलिए वह भी दौड़ पड़ा
और जब कुआँ छूकर वापस लौटा, तो देखा-
बैठकर आदमी मिठाई खा रहा है
वैसे जैसे फाइलों पर बैठ
बाबू सालों साल खाते रहते हैं।