भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैल बियावै, गैया बाँझ / 8 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
शेरें कौआ सेॅ पूछलकै-
तोरा पर आदमी झपट्टा कैनें मारलकौ
कौआं कहलकै-
एक दिन आदमी
ओकरोॅ हिस्सा के माँस खाय गेलै
तहिये सेॅ हमरा देखथैं
ऊ डरी जाय छै कि
कहीं माँसे झपटै लेली तेॅ नै आवी गेलियै।
अनुवाद:
शेर ने कौवे से पूछा-
तुमपर आदमी ने झपट्टा क्यों मारा
कौवे ने कहा-
एक दिन
आदमी के हिस्से का माँस खा गया
तब से मुझे देखते ही
उसे डर होता है
कहीं माँस झपटने तो नहीं आ गया।