भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैल / शरद बिलौरे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरे दिन
अपने-अपने भविष्य को कंधा देने के बाद
शाम आने पर
बैल अकसर जुगाली करते हैं
और आदमी बातें।

कभी-कभी बैल बतियाते हैं
एक-दूसरे से
कि आदमी काम करते वक़्त
मुड़-मुड़ कर देखता क्यों है?

दूसरा कहता है
अपनी नाक में रस्सी नहीं होती
तो अपन भी मुड़कर नहीं दॆकते क्या?
आदमी की नाक में कौन-सी रस्सी है
कौन खींचता है उसे?

बैल जब-जब यह बात
आदमी से पूछते हैं
आदमी जुगाली करता है।