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बैल / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
पूरे दिन
अपने-अपने भविष्य को कंधा देने के बाद
शाम आने पर
बैल अकसर जुगाली करते हैं
और आदमी बातें।
कभी-कभी बैल बतियाते हैं
एक-दूसरे से
कि आदमी काम करते वक़्त
मुड़-मुड़ कर देखता क्यों है?
दूसरा कहता है
अपनी नाक में रस्सी नहीं होती
तो अपन भी मुड़कर नहीं दॆकते क्या?
आदमी की नाक में कौन-सी रस्सी है
कौन खींचता है उसे?
बैल जब-जब यह बात
आदमी से पूछते हैं
आदमी जुगाली करता है।