Last modified on 10 नवम्बर 2017, at 14:19

बॉलीवुड की नगरवधू / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

कोई सभा नहीं
कोई आचार्य नहीं
सोचा भी न होगा
नग्नता प्रदर्शन करेगी
होड़ लगाकर
दर्शक लगे रहते हैं
वस्त्र थोड़े और ऊपर
कह-कहकर
खींचने को तस्वीरें
बसाने को आँखों में
जो वो नहीं दिखाती
उसे देखना भी नहीं चाहता कोई
स्पर्धा तो है उघाड़ने की
कौन हो सकता है
सबसे ज्यादा नग्न
किसके पीछे लग सकती है
सबसे ज्यादा भीड़
कितनी पत्रिकाएँ,
कितने चैनल,
कितने रेडियो
प्रेम संबंधों की
करते जुगाली
झाँकते हैं व्यर्थ
उनके निज जीवन में
भेंटवार्ता कैसी-कैसी
आप क्या खाती हैं?
आप क्या पहनती हैं?
आपका पसंदीदा मर्द कौन-सा है?
इन सवालों के अर्थ क्या हैं?
इनके उत्तरों की क्या सार्थकता है?
क्या जरूरी हैं ये सवाल?
क्या जरूरी हैं ये जवाब?
कितना किसके अंदर झाँकोगे
भूल जाओ कि तुम्हें कोई चाहेगा
भूल जाओ की तुम्हारा कोई नाम लेगा
सब-कुछ चाहिए विदेशी
अगर भों-भांे भी करनी है
तो अंग्रेजी में
समझ से बाहर है ये सब
इतनी बर्बाद की गई दौलत से
कई भूखे मरने से बच जाते
कइयों के सिर पर छत हो जाती।