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बोगनवेलिया / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
लड़कियों को
एक दिन छोड़नी होती है अपनी ज़मीन
अपना मायका
और उन सारी चीजों को जिनके लिए
वह कभी जान देती थी
माँ का आँचल, पिता का दुलार
बचपन की सहेली
आँगन की चिड़ियाँ सब कुछ।
वह चाहे जितना रो लें
उनकी यही क़िस्मत है
यही रिवाज़ है
शायद किसी ब्रह्मा ने लिखी है।
सुनने में आता है
बोगनवेलिया किसी दूर देश से लायी गयी
जब उसे मालूम हुआ कि बग़ल के कमरे
से कोई हाथ उसके आँसू पोछने के लिए
अब नहीं आएँगे
उसने अपने आँसू अपने सीने
में ज़ब्त कर लिए
मेरे बूढ़ी दादी का
चेहरा बिलकुल बोगनवेलिया कि तरह था
वो बताती थीं कि बोगेनविलिया के आँसू
अंदर अंदर रिसते रहते हैं
किसी भी पथरीले और सूखे वाले मौसम में भी
बोगनवेलिया सूखता नहीं है
वह खिला होता है दुनिया के सारे फूलों से ज़्यादा।