बोझिल अहसासों के आगे, गहरा चुम्बन सूख गया / नज़्म सुभाष
बोझिल अहसासों के आगे, गहरा चुम्बन सूख गया
मुरझाई मुस्कान दिखी तो, प्यारा दर्पण सूख गया
नाजुक कंधे बोझ उठायें , धोयें ढाबे पर बर्तन
बाप मरा तो दुनिया बदली, भोला बचपन सूख गया
नैहर छूटा, सखियां बिछड़ीं, इक कमरे की दुनिया अब
पीली देह, धंसी हैं आंखें , गद्दर यौवन सूख गया
इन्सानों के घर में जब से , नागफनी के पांव पड़े
सहमा-सहमा तुलसी पौधा, सारा गुलशन सूख गया
कागज के टुकड़ों की खातिर, बीवी- बच्चे भूले थे
देह थकी तो मुड़कर देखा, सारा जीवन सूख गया
दर्द भरी वो लम्बी रातें ,अंधियारे की परछाई
तू-तू, मैं-मैं मार - कुटाई ,भाव समर्पण सूख गया
नीम कटी तो क्षुब्ध परिंदे , खामोशी को छोड़ गये
झिंगली खटिया,तन्हा अम्मा, घर का आंगन सूख गया