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बोझिल पलकों को लेकर / कविता भट्ट

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 बोझिल पलकों को लेकर
लिखना चाहती हूँ -
दर्द और संघर्ष
देखूँ- पहले क्या ख़त्म होता है
कागज, स्याही, दर्द, दर्द की दास्ताँ,
या फिर मेरी पलकों का बोझ...?
जो भी खत्म होगा
मेरे हिस्से कुछ न आएगा
क्योंकि समय ही कद तय करता है,
दर्द और संघर्ष कितना भी बड़ा हो
बौना ही रहता है...।