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बोझ सिर से हटा गया कोई / कैलाश झा 'किंकर'
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बोझ सिर से हटा गया कोई।
दाग़ दिल का दिखा गया कोई।
जीत के पास ही खड़ा था मैं
फिर भी मुझको हरा गया कोई।
यूँ तो बंजर ज़मीन थी सारी
फूल फिर भी खिला गया कोई।
झूठ का दाँव चलने वाला था
सच का सूरज उगा गया कोई।
सीख दुनिया को दे रहा था जो
आज उसको सिखा गया कोई।
सोचने की दिशा ग़लत जिसकी
उसको दर्पण थमा गया कोई!