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बोझ हल्का करने का गीत / वरवर राव / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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पुरवैया की तरह
तुम याद करने आई
दिल छूने वाली कहानियाँ
आंसू से भरी गोदावरी सागर से जिन्हें कहती थी ।

पेड़ की तरह निस्पन्द
जीवन की बयार के लिये तड़पता हुआ
मैंने अपना मुँह खोला ।

क्या हम दोनों के बीच कोई अदृश्य हाथ था ?
क्या हम, ख़ुद पर हुक़्म जारी करते हुए,
ख़ामोश हो चुके थे ?
तुमसे नज़र चुराने के लिए
मैंने अपने आंसू
हलक से उतार लिए ।
दिनभर ये आंसू मेरे गले में बिंधते रहे ।

अब, यह रात,
यह रात जबकि सागर अपनी गोद में
गोदावरी को लेकर उसे तसल्ली देता है,
सुर बाँधकर, जो बेसुर हो चुके हैं
गहरी सांसों में.
सांस लेते हुए हारमोनियम की तरह मेरे दिल में
दोनों हाथों से ।

मैंने अपना चेहरा धो लिया
याददाश्त से उभरते शोकगीत से ।
अब गले में कोई काँटा नहीं
आँखों में भी नहीं ।
हमारे बीच
अथाह समय के इस सेतु पर
— हम बात करने के लिये मुंह नहीं खोल सके —

बोझ हल्का करने वाला यह गीत मैंने सुपुर्द किया ।

तुम तक यह पहुँचेगा परिन्दे या फूल की तरह
या फिर पागल हवा की तरह ।

क्या तुम्हारा जवाब कोमल नहीं होगा?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य