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बोझ हो तो फिर तअल्लुक़ तोड़ देते हैं / विकास जोशी
Kavita Kosh से
बोझ हो तो फिर तअल्लुक़ तोड़ देते हैं
हम कहानी यूं अधूरी छोड़ देते हैं
जब कभी हमको लगी बोझिल किताबों सी
कुछ वरक़ हम ज़िन्दगी के मोड़ देते हैं
वो निगाहों से पिलाएं तो ये वादा है
हम क़सम सारी पुरानी तोड़ देते हैं
पी के जितनी मय बहकने तुम लगे हो ना
हम तो उतनी ही लबों पे छोड़ देते हैं
जो किसी भी काम के ना थे ज़माने में
रुख हवाओं का वही तो मोड़ देते हैं
गुफ्तगू हमसे जो करता है मुहब्बत की
दिल हमारा हम उसी से जोड़ देते हैं
कुछ सज़ा उनके लिए भी तो मुक़र्रर हो
दोस्त बन के जो भरोसा तोड़ देते हैं
दोस्त है वो तो दिखाता है सचाई बस
लोग आईना मगर क्यूं तोड़ देते हैं