भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोझ / भारत यायावर
Kavita Kosh से
मैंने अपना दे दिया तुम्हें
सब कुछ
और मुक्त हो गया
तुमने उसे दे दिया अपना
सब कुछ
और मुक्त हो गए
उसने किसी और को दे दिया अपना
सब कुछ
और मुक्त हो गया
सबने अपनी मुक्ति के लिए ऐसा किया
सबने बोझ उतारा
अपना-अपना
सबने ख़ुद को मुक्त किया
पर यह सिर्फ़ कोशिश थी
अगले रोज़ फिर लद गए
उतने ही बोझ से
इतना कि माथे से पसीना बहा
पर एक आदमी ऐसा भी था
उफ़ तक नहीं की
अपना बोझ उठाए
सुबह से शाम तक चला
अपना बोझ उठाए घर आया
खाना खाया
चैन से सोया
बोझ उठाए ही हँसा
देर तक
दोस्तों-परिजनों के बीच
वह मुक्त रहा
बिना मुक्ति की चाह किए