यह पौधों का छात्रावास है
जिसे कान्वेण्ट स्कूल की तरह बड़ी सख्ती से चलाया जाता है।
घास, पेड़ और फूल यहाँ
शालीनता से उगते है
ना कि यूँ ही इधर उधर पैर फैलाते जाएँ,
ये भौरों के साथ अन्तरंग ना होने की वर्जना का भी पालन करते हैं।
अपने भारी-भरकम लैटिन नामों से ये निरन्तर शर्मिन्दा होते हैं
और इस बात से भी कि उन्हें उदाहरण की तरह
अपने आप को पेश करना पड़ता है।
यहाँ तक कि गुलाब भी अपने होंठ सिल कर रखते हैं।
वे उस संग्रहालय का सपना देखते हैं
जहाँ सूखे हुए फूल और पत्तियां रखी जाती हैं।
बूढ़े लोग किताब साथ लेकर यहाँ आते हैं
और सुस्त धूप घड़ियों की टिक-टिक में झपकी लेते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार