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बोतलें / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
बोतलों की देह को कभी भी
युवा स्त्री की आकृति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
इससे बोतलों की भूरी उदासी
थोड़ी और गहरी हो जाती है।
उनके आँखें नहीं होतीं,
अगर होतीं मुझे यकीन है -
बड़ी-बड़ी और पनीली होतीं।
वे डरी हुई आवाज़ में फुसफुसा कर बोलती हैं
और अपने लुढ़कने को अंत तक
गरिमापूर्ण बनाए रखती हैं।
अपने से चिपटे रहने वाले लेबल्स से
उनकी चिढ़ तो जगजाहिर है ही।
वे इतनी शर्मीली हैं कि
आज तक कर ही नहीं पाईं प्यार।