भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोधक पात्र / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
गौतम बुद्ध जनिक बोधेँ हिंसा जगसँ उठि गेल
तनिका लग जिज्ञासु लोक जुटइत छल बोधक लेल
संगहि किछु उत्साही शिष्य प्रचारक बोधक दानि
कहि-सुनि अनुयायी बनबय लगला बुद्धक लग आनि
एक दिन एकटा आगन्तुककेँ श्रान्त-क्लान्त अति देखि
पुछलनि बुद्ध-भूख लागल की अछि अहँ केँ सविशेष?’
कहलक-‘दू दिन सँ अन्नक दाना नहि भेटल हाय!’
बुद्ध तुरंत शिष्यकेँ कहलनि-‘खोआ-पिआबह जाय।’
सभ लगले आगत स्वागतसँ भोजन ओकरा देल
तखन पुनः आनल गेल शिष्यक द्वारा बोधक लेल
बुद्ध कहलथिन- ‘जाह आब तोँ, तोहर एतबे काज।’
शिष्य पुछलथिन बोध कहाँ भेटैलै एकरा महाराज!!’
बुद्धक उत्तर छल एतबे - ‘एकरा न तकर अनुरोध
तोहरे बुद्धि-बोध आवश्यक, भुखल’क अन्ने बोध।’