भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोध / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
उसने देह को सुंदर देखा
वाणी को मधुर
स्पर्सेन को सुखकर
और श्वास को
सुगंधित
उसने चित्त को
मलिन पाया
जनवरी 1990