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बोध / महेन्द्र भटनागर

अद्भुत

कश-म-कश में
दिन.... हफ्ते... महीने....वर्ष
गुज़रते जा रहे,
विस्मय !
नहीं वश में
अरे, कुछ भी नहीं वश में,
'विवशता'
अर्थ :
जीवन तो नहीं ?

एक दिन
यों ही अचानक
हो जाएगा लय
सब !
कहीं क्या दीखती है
विभाजक-रेख ?
फिर क्या कहा जाए
सार्थक / व्यर्थ ?

अस्तित्व
लुप्त होने के लिए,
जन्म-जागृति
सुप्त होने के लिए
, फिर,
यह कश-म-कश किसलिए ?

गुज़रने दो
रात दिन / दिन रात
पल-क्षण,
काल-क्रम अविरत,
विषम-सम !