बोरिस येल्स्तीन / अनिल अनलहातु
जब रात गहराने लगती
लैम्प-पोस्टों की पीली–पीली रोशनी
मुरझाई हुई-सी
छितरा रही होती है,
जब एक स्तब्धता की जकड़न में
कस गया होता है सन्नाटा।
ऐसे में किसी कोने अंतरे
गुसलखाने या सिंक के नीचे से
निकलता है
नौ साल का नन्हा 'सेर्जेई'
निक्कर ठीक करता
टटोलता रास्ते पर सोये
लोगों की जेबें।
बना लिया है उसने
यार–दोस्त,
नाइट कफेटेरिया के रसोइयों को,
वह मारिजुयाना और जूठनों
के दम पर
ज़िंदा है,
"दिल तक आसानी से पहुँच सकता है"
वह दिखा अपना चाकू
डिंग हाँकता है।
वह जानता नहीं
कि उसी की धरती पर
उगा था लाल तारा,
निज़्नी नोवगोरोद की सड़कों पर
झाड़ू लगता
सेर्जेई अल्मीडा,
क्या गोर्की और दोस्तोएव्स्की द्वारा
भोगे गए नरक के दिन
वापस आने वाले हैं?
और एक भूरा सूअर
बोरिस येल्स्तीन
इन्हीं सेर्जेइयों के ताबूत पर
इक्कीसवीं सदी का
खुशफहमी उगा रहा है।