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बोलडोजर पर बसेरा / चंद्रभूषण

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खारी बावली, धोबी तालाब, काँटा पुकुर
ये दिन भर भीड़ से भरे रहने वाले
कुछ सूखे शहरी इलाकों के नाम हैं,
जहाँ कभी पानी लहराता होगा ।

पानी अब यहाँ बम्बों में भी कम ही आता है
और पानी के अलावा कई दूसरी वज़हें भी हैं,
मसलन इनका डाउनमार्केट नाम, जिसके चलते
यहाँ रहने वाले अब इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते ।

वे अपमार्केट नामों वाली कॉलोनियों में रहते हैं
ग्रीन ह्याट, न्यूलैंड्स, वाटर वैली जैसे जिनके नाम हैं
हालाँकि डाउनमार्केट नामों वाली जगहों पर
धंधा करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है ।

कोई देसी जुबानों में इन नामों का अनुवाद करे
और इनकी असलियत का खयाल मन में लाए बगैर सोचे
तो बन्द आँखों से शायद उसे घास पर ऊँघता कोई हुदहुद
या काई लगे पानी में ऊँचाई से डुबकी मारकर
झींगा पकड़ता कोई कौड़िन्ना दिखाई पड़े।

कैसी मज़े की बात कि ग्रीनवैली मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स में
वेटलैंड्स कंजर्वेशन कंसॉर्शियम नाम के एक दफ़्तर के
एक कारकुन ने एक शाम हिम्मत करके
अपने एक दोस्ताना सीनियर से पूछा—
सर, और सब तो ठीक है लेकिन
ये वेटलैंड्स साली, चीज़ क्या है और पाई कहाँ जाती है ।

गर्मियों की रात थी, नौ बजा चाहते थे
नियॉन लैंपों की पीली धुन्ध के बहुत ऊपर
सारसों की एक पाँत कें-कें करती जा रही थी—
ख़ुद को बचाने की इंसानी चिंताओं से अनजान
इस सामूहिक सोच में डूबी हुई कि
अगला बसेरा कहीं बुलडोजर पर ही न करना पड़े ।