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बोलता क्यों नहीं / जावेद अनवर

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तूने क्यों अपने गालों पे सरसों मली
तूने क्यों अपनी आँखों में चूना भरा
तेरी गोयाई किस दश्त के भेड़िये ले गए
बोलता क्यों नहीं

बोलता क्यों नहीं, तिफ़ल-ए-मासूम, तू कब से बीमार है
कैसा आज़ार है, जिसने तेरी शबों से तेरी नींद, तेरे दिनों से
खिलौने चुराए,
तू सोया नहीं है मगर जागता क्यों नहीं !
देखता क्यों नहीं तेरे बाबा के बालों में खुजली है और उँगलियाँ झड़ चुकी हैं
हिसाब-ए-शब-ओ-रोज़ करते हुए
तेरी अम्माँ के राशा-ज़दा हाथ ख़ुशहालीयाँ ढूँडते-ढूँडते
इन धुले बर्तनों में पड़े रह गए
सुबह-ए-ताबीर ने शाख़ पर सबज़ होने की हसरत लिखी
आँख को मोतिया दे दिया !

देखता क्यों नहीं आज बाज़ार में जश्न-ए-अफ़्लास है
शहर की भूक चोरी हुई
और ख़बरों ने अख़बार गुम कर दिया !
लोग रोते रहे !
लोग हंसते रहे !
तेरे बिस्तर पे अश्कों की चम्पा खिली
और तू चुप रहा !
तेरे माथे पे मुसकान का इतर छिड़का गया
और तू चुप रहा !

मेरी हण्डिया जली
मेरा चूल्हा बुझा
मेरी झोली से हर्फ़-ए-दुआ गिर गया
मेरे बच्चे तू लब खोलता क्यों नहीं
बोलता क्यों नहीं !