भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलना / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
हर बार जब मैं
अपना मुँह खोलता हूँ
तो केवल मैं ही नहीं बोलता
माँ का दूध भी
बोलता है मुझमें से
पिता की शिक्षा भी
बोलती है मुझमें से
मेरा देश
मेरा काल भी
बोलता है मुझमें से