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बोलिए कितनी कही हैं काम की ग़ज़लें / रामकुमार कृषक

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बोलिए कितनी कही हैं काम की ग़ज़लें,
साक़ियो-मीनाओ-हुस्नो-जाम की ग़ज़लें ।

फूल ये खिलते हुए महके हुए मंज़र,
याद कुछ होंगी गुलाबी शाम की ग़ज़लें ।

चांद का मुंह भी रहा जिनके लिए टेढ़ा,
क्या कहेंगे मुश्किलाते-आम की ग़ज़लें ।

बात हर जलती हुई शिकवे-गिले-गाली,
हैं नहीं क्या ऐश-ओ- आराम की ग़ज़लें ।

शायरी का क्या सियासत से भला रिश्ता,
शेर कुछ कहिए न कहिए नाम की ग़ज़लें ।