बोलिवर के लिए गीत / पाब्लो नेरूदा / अनिल जनविजय
बोलिवर को समर्पित नेरुदा की लम्बी कविता का एक अंश
हमारे पिता, जो बसे हैं हमारी धरती में,
जो पानी में हैं और हवा में भी हैं
हमारी पृथ्वी के विशाल और मौन विस्तार में
समाए हुए हैं जो।
पिता !
हमारे देश में सब कुछ तुम्हारे ही नाम पर है ।
तुम्हारा नाम गन्ने की मिठास को बढ़ाता है,
बोलिवर के राँगे में बोलिवर की चमक बसी हुई है,
बोलिवर ज्वालामुखी पर बोलिवर पक्षी उड़ान भरता है,
हमारे आलू और शोरे में तुम्हारा ही रूप,
तुम्हारा ही असर है,
हमारे फ़ास्फ़ोरस पत्थर की नसों में बहता है तुम्हारा ही रक्त,
जो कुछ भी हमारा है, वह तुम्हारे ही बीते हुए जीवन से आता है,
ये नदियाँ, मैदान और घण्टाघर
सब तुम्हारी ही विरासत हैं,
तुम्हारी विरासत ही
आज हमारी रोज़ी- रोटी है, पिता !
००
बोलिवर से मेरी मुलाक़ात एक सुबह कुछ देर से हुई थी,
मैड्रिड में, पाँचवीं रेजिमेंट के प्रवेश द्वार पर ।
पिता, मैंने उससे पूछा — तुम कौन हो ? तुम हो भी या नहीं ?
माउण्टेन बैरकों की ओर ताकते हुए उसने जवाब दिया —
‘हर सौ साल में मैं तब जागता हूँ, जब जागते हैं लोग।’
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
Pablo Neruda
Our father who art in the earth,
in the water, in the air
of all our wide and silent latitude,
all bears thy name, father, in our land:
thy name the sugar cane raises to the sweetness,
Bolivar tin has a Bolivar brilliance,
the Bolivar bird over the Bolivar volcano,
the potato, the saltpeter, the special shadows,
the currents, the veins of phosphoric stone,
all that is ours comes from thine extinguished life,
thy heritage was rivers, plains, bell towers,
thy heritage is this day our daily bread, father
०००
I met Bolivar one long morning,
in Madrid, at the entrance to the Fifth Regiment.
Father, I said to him: are you or are you not, or who are you?
And looking at the Mountain Barracks, he said:
‘I awake every hundred years when the people awake.’