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बोली "सुधि करो प्राण !कहते थे हमने देखा है सपना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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बोली "सुधि करो प्राण !कहते थे हमने देखा है सपना ।
वह मधुबेला भूलती नहीं भूलता न अधरों का कंपना।
देखा था अनाघ्रात कलिका सी किए जलज लोचन नीचे।
थी खड़ी वल्लभा वदन इंदु पर नील झीन अंचल खींचे।
मृदु दर्पणाभ कोमल कपोल की हुई असित अरुणाई थी।
नव कुबलय-दल-पड़-नख से रचती भू पर निज परछाईं थी।
सपने में अपना किया वही बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥६॥