भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोली ओखर तो, करूहा होगे ओ / रमेशकुमार सिंह चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोली ओखर तो, करूहा होगे ओ
बाबू के ददा हा, दरूहा होगे ना।

मोरे ओ मयारू, रहिस अड़बड़ ...
पी अई के तो मारे, बइसुरहा होगे ना।

रूसे कस डारा, डोलत रहिथे...
बाका ओ जवान, धक धकहा होगे ना।

फोकट के गारी, अऊ फोकट के मार...
जीयवं कइसे गोई, धनी झगरहा होगे ना।

पिलवा पिलवा लइका, मरवं कइसे...
जीनगी हा मोरे, अब अधमरहा होगे ना।