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बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया
सब दिल का हाल आपका चेहरा सुना गया
इस दौर में किसी को किसी का नहीं लिहाज़
बातें हज़ार अपना ही बेटा सुना गया
भूखे भले ही मरते, न करते उधारियाँ
सौ गालियाँ सवेरे से बनिया सुना गया
वो नाग है कि फन ही उठाता नहीं ज़रा
धुन बीन की हरेक सँपेरा सुना गया
दिल का सुकून छीनने आया था नामुराद
दिलचस्प एक क़िस्सा अधूरा सुना गया
उस रब के फै़सले का मुझे इन्तज़ार है
मुन्सिफ़ तो अपना फ़ैसला कब का सुना गया
क्यों मोम हो गई हैं ये पत्थर की मूरतें
क्या इनको अपना दर्द 'अकेला' सुना गया