भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलो औ है कैड़ो घर बाबा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बोलो औ है कैड़ो घर बाबा
म्हांनै तो लागै अठै डर बाबा
भेळा कर सको तो करो मिणिया
गई म्हांरी माळा बिखर बाबा
सांस लेवतां लागै डर म्हांनै
हवा तकात में है जहर बाबा
पाळै-पोखै ईद नै उडीकै
किंयां हुवै अठै गुजर बाबा
जग कीं कैवै पण छोडां कोनी
आं आखरां में है असर बाबा