भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलो कैसे रह जाते हो तुम बिन बोले / हिमांशु पाण्डेय
Kavita Kosh से
बोलो कैसे रह जाते हो तुम बिन बोले
जब कोई स्नेही द्वार तुम्हारे आकर तेरा हृदय टटोले ।
जब भी कोई पथिक हांफता , तेरे दरवाजे पर आए
तेरे हृदय शिखर पर अपनी प्रेम-पताका फहराए,
जब तेरी आतुरता में , कोई भी विह्वल मन डोले -
बोलो कैसे रह जाते हो तुम बिन बोले ।
जब भी कोई तुम्हें समर्पित, तुमको व्याकुल कर जाता है
तेरे मन की अखिल शान्ति में करुण वेदना भर जाता है ,
जब भी कोई हेतु तुम्हारे, हो करुणार्द्र नयन भर रो ले -
बोलो कैसे रह जाते हो तुम बिन बोले ।