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बोलो मीठा बोल / कमल सिंह सुल्ताना

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सबदां माय मिळावणो,अपणापे रो घोल ।
मिलियाँ पण नी पांतरै, बोलो मीठा बोल ।।१।।

आखर मधरा ओपता,ताकड़ियाँ में तोल ।
नेह बहै जिण नाळियां,बोलो मीठा बोल ।।२।।

ऐड़ा सबद उकेरणा,ढम ढम बाजै ढोल।
मन रीझै हद मोकळा, बोलो मीठा बोल।।३।।

कंजूसी नी बरतणी,केणों हिवड़ो खोल ।
अंतस सीधा ऊतरै,बोलो मीठा बोल ।।४।।

कोयल ज्यूँ ही बोलणो,कागा रो नी मोल।
मनमोही अर मोवणा,मीठा बोलो बोल ।।५।।

बिना प्रेम सूँ बोलणो,नैया डांवाडोल ।
साँभल नै पतवार तूँ,बोलो मीठा बोल ।।६।।

मीठे मन रा मानवी,बरसां उठै हबोल ।
अंते में छप जावसी,बोलो मीठा बोल ।।७।।

हेत सूँ जकड़ सांवठा,गूँजा मेळ किलोळ ।
बरसां तक नी वीसरै,बोलो मीठा बोल ।।८।।

सोच समझ नैं खरचणां,आखर है अणमोल ।
मोल नही व्है आखरां,बोलो मीठा बोल।।९।।

सबद घाव नित तड़पते, रैवै मन नित झोल।
बोल्यां पेली विचारणो,बोलो मीठा बोल ।।१०।।