बोलो वन्दे मातरम् / सच्चिदानंद प्रेमी
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्-
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्!
भरत भूमि की नारी सच्ची
बोलो वन्दे मातरम्।
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्-
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्!
समरांगन से चली लेखनी-
चुपके-छुपके तेरे पास,
प्रणय-पंथ का पत्र न समझो
ज्वालामय है यह उच्छ्वास;
कैसे तुम्हे बताऊँ कैसे-
कटता है दिन,कटती रात?
मन में जगती याद तुम्हारी
दृग में जग का झंझावात
बोलो वन्दे मातरम्!
सीमा पर नित चौकस रहता-
मस्ती में जगता यह राग,
धूल चाटते दीखता सम्मुख-
शत्रु-सैन्य का सुख सौभाग्य ;
यहाँ न मन में कोई चिन्ता-
माँ की केवल रहती याद,
यही लक्ष्य की शीघ्र मिटायें
मातृभूमि-भूमि का गहन विषाद!
बोलो वन्दे मातरम्!
रणभेरी के तुमुल घोष में-
जगता है सरहद का गीत,
बढ़ने दे हम नहीं शत्रु को-
कार्य यही वस परम पुनीत,
तू तो मेरे प्राण-प्राण में-
कभी न तुझको सकता भूल,
दृढ़ संकल्प है वाणी तेरी-
दुश्मन होगा ही निर्भूल ;
बोलो वन्दे मातरम्!
छल वल से मै नहीं हटूँगा-
डटा रहूँगा सीने तान,
रण में पीठ न दिखला सकता-
भरत-भूमि का अभय जबान ;
मांग सजाकर निज सखियों में-
चमकोगी पढ़कर अखबार,
दन-दन-दन-दन जब गोलों से
हमला होगा सरहद पार;
बोलो वन्दे मातरम्!
याद करेंगे दूध छठी का
तोपें जब उगलेगी आग,
अरि-शोणित से भर-भर खप्पड़
रणचंडी फुकरेगी झाग ;
बना कलेबा क्रूर काल का-
लौटूँगा घर रखना आस,
स्वागत में बाँहों की माला
ले आऊंगा तेरे पास ;
बोलो वन्दे मातरम्!
किम्बा दूर विजय-श्री होगी
तो लौटेगा शून्य-शरीर,
चमक उठेगी जिससे निश्चय
भावी भारत की तश्वीर ;
विहँस बताना विजय गर्भ से
करके उन्नत श्वर्निम भाल,
उऋण हुए माता के ऋण से
भारत माँ के सच्चे लाल;
बोलो वन्दे मातरम्!
स्वर्गारोहण चिता सजाकर
गर्वित दृग से दे सम्मान,
हटा तिरंगा मुझे सुलाना
वन्दे मातरम् का कर गान ;
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्-
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्!
सौगंध तुम्हे समरांगन की
यही निवेदन सौ-सौ बार
श्राद्ध करो तो करना ऐसा
जैसा भारत का त्योहार!
बोलो वन्दे मातरम्!
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्-
वन्दे मातरम्-वन्दे मातरम्!