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बोलो / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
हम उससे कम चुप्पी वास्तव में अपने लिए चाहते है जितने की इच्छा करते हम दिखाई देते हैं ।
कोलाहल हमें मृत्यु के विचार से दूर रखता है ।
सच तो ये है कि चुप्पी को न वस्तुओं की ज़रूरत होती है न जंतुओं की ।
लंबा एकांत पहले हमारे सपनों पर अन्धकार की तरह उतर आता है फिर हमें मदद करता है कि हम अपना चेहरा याद रखने की ज़रूरत ही न समझें ।
कई बार बे-ज़रूरत भी कुछ बोल पड़ना चाहिए, भले ही इससे हमारी छवि थोड़ी बिगड़ती हो ।