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बौछार / अज्ञेय
Kavita Kosh से
इतनी तेज़ी से आयी थी
रुक ही न सकी
वह उसी झोंक में चली गयी
धीमे आती सहलाती
हम कहते यह बौछार प्यार की है
रहते निःस्तब्ध। छुअन से बँधे।
किन्तु वह रुकी नहीं
हम सहमे, थमे,
उफ़न-उमड़न मन की पर
एक उमस में छली गयी
वह आयी आँचल लहराती
तृषा और लहराती
तृषा और गहराती
भरमाती, सिहराती, चली गयी।