अभी इतने तो नहीं हुए हैं बौने हम,
कि हो जाएं आपके हाथ के खिलौने हम।
लेकिन दूब कहीं दोषारोपण न कर बैठे,
बस यही डर लगता है अब तो वट होने में
बबूल अन्तत: हमको स्वीकारने ही पड़े
गलती हमसे हुई बीज आम के बोने में।
माना पर्वतों-सी ऊंचाई नहीं पाएंगे हम
घाटी होकर लेकिन मिट तो नहीं जाएंगे हम
तलहटी में उतर शाम की तरह, देखना एक दिन
धूप की मौत पर अनायास खिलखिलाएंगे हम।
आप इस तरह जो न भ्रम पाले होते
परछांई तक में न इतने काले होते
हमने तो जीवन भर जिसमें प्यार बांटा
उपेक्षाएं भर-भर मिली हमें उसी दोने में।
जीवन में प्राय: त्रुटियाँ कर जाता है आदमी
अपने साये से अक्सर डर जाता है आदमी
ज्वालामुखी होना स्वाभाविक ही है दोस्तो
जब-जब कषाय लावों से भर जाता है आदमी
आप जो न उभारते दीमकों के स्वर
हम भी हो ही जाते किसी पुस्तक के अक्षर
दरारें उभर आएं सूखी झील में तो समझो
बिलखी तो बहुत झील पर अश्रु नहीं रोने में।