बौने पेड़ों के सब पत्ते / अंकित काव्यांश
बौने पेड़ों के सब पत्ते चबा गयी बकरी।
माली भी ऊँचे पेड़ों को सींच रहा है
अपनी कमजोरी पर कुढ़ता बौना पौधा।
हरियाली बिन उसको सामाजिक छवि के हित
गन्दे नालों से भी करना पड़ता सौदा।
तना खीजकर रहा सुनाता सबको खरी खरी।
बौने पेड़ों के सब पत्ते चबा गयी बकरी।
न्याय बंधा है दौलतमंदों के खूंटो पर
खूंटे देकर पछताती हैं बेबस शाख़ें।
नंगे पाँव नही आएगा कोई मिलने
राह ताक कर थकी हुई हैं बूढी आँखें।
जूठे बेर फेंककर जंगल में बैठी शबरी।
बौने पेड़ों के सब पत्ते चबा गयी बकरी।
अपना उल्लू सीधा करके निकले सारे
आश्वासन की छाँव तले अंकुर फूटेगा।
नयी कोपलें उग आएँगी फिर पेड़ों पर
लोगों का विश्वास एक दिन फिर टूटेगा।
चौपट शासन पर ख़ुश होती है अंधी नगरी।
बौने पेड़ों के सब पत्ते चबा गयी बकरी।